Tuesday 25 October 2016

देश का बुरा हाल है||

कवि:  शिवदत्त श्रोत्रिय

हर किसी की ज़ुबाँ पर बस यही सवाल है
करने वाले कह रहे, देश का बुरा हाल है||

नेता जी की पार्टी मे फेका गया मटन पुलाव
जनता की थाली से आज रूठी हुई दाल है||

राशन के थैले का ख़ालीपन  बढ़ने लगा
हर दिन हर पल हर कोई यहाँ बेहाल है||

पैसे ने अपनो को अपनो से दूर कर दिया
ग़रीबी मे छत के नीचे राजू और जमाल है||

आंशु बहा-बहा कर भी थकता कहाँ है वो
ये ग़रीब की अमीर आँखो का कमाल है||

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