Wednesday 24 December 2014

रेल से अजब निराली है

इस काया की रेल - रेल से अजब निराली है|
ज्ञान, धरम के पहिए लागे,
कर्म का इंजन लगा है आंगे,
पाप-पुण्य की दिशा मे भागे,
२४ घड़ी ये खुद है जागे,
शुरु हुआ है सफ़र अभी ये गाड़ी खाली है||
इस काया की रेल ............

एक  राह है रेल ने जाना
जिसको सबने जीवन माना
हर स्टेशन खड़ी ट्रेन है
अंदर आओ जिसको है जाना
झंडी हरी मिली रेल अब जाने वाली है||
इस काया की रेल ............

जिसको भी मंज़िल पहुचाया
उससे पुण्य का भाड़ा पाया
पाप की गठरी खूब कमाया
जिस पथिक को मार्ग गुमाया
मद योवन मे डूबी रेल ये रेल मतवाली है||
इस काया की रेल ............

पाप पुण्य का हिसाब मगाया
यॅम का आज निमंत्रण आया
गार्ड ने लाल झंडी दिखाया
आख़िरी स्टेशन बतलाया
अब कितना भी करलो जतन रेल नही चलने वाली है||
इस काया की रेल ............

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